रविवार, 31 मई 2020

खुद को महत्त्व कैसे दें




अगर कभी कोई आपको महत्त्व ना दे तो क्या करें .........

 कितनी बार ये बातें  हमारे मन में चलती रहती है कि मैं इसको जितना महत्त्व अपनी जिंदगी में दे रहा हुँ मुझे उतना क्यों नहीं मिल रहा उससे यही सोच - सोच कर  परेशान रहते है , मन में नकारात्मक विचार आते रहते है , और कहीं भी मन नहीं लगता है हमारा..... लेकिन ऐसा क्यों .....क्यों हमारी ख़ुशी और गम दूसरों की मोहताज है , क्यों अपनी ख़ुशी या गम  के लिए हम दूसरों पर निर्भर रहते हैं ..... हमारी ख़ुशी हमारी अपनी है और हमारे भीतर के सारे  भाव हमारे अपने है इसके लिए दूसरों पर निर्भर करना छोड़ना पड़ेगा, हमें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए अगर कोई हमें महत्व नहीं दे। कभी नहीं सोचना चाहिए  में तो इसके लिए इतना करता हुँ  क्यों नहीं करता जब मैं उसको इतना महत्व देता हुँ तो वो क्यों नहीं देता छोड़नी पड़ेगी ऐसी सोच को .......

 ...... सबसे पहले हमें खुद को बेचारा बनाना छोड़ना होगा कौन हमें महत्त्व दे रहा हे और कौन नहीं दे रहा इससे ज्यादा फर्क पड़ता है की हम खुद की कितनी इज्जत करते हैं हम खुद को कितना महत्त्व देते हैं क्यूंकि जबतक हम खुद की  इज्जत नहीं करेंगें खुद को महत्त्व नहीं देंगे तबतक कोई दूसरा हमें महत्तव नहीं देगा ! अकेले बैठे रहने से खुद को परेशान करने से कुछ नहीं होने वाला ....... सबसे पहले खुद पे काम करना होगा सोचना पड़ेगा की खुद में कैसे प्रगति करे , कैसे अपने ज्ञान को बढ़ाए , अपने व्यक्तित्व में बदलाव लाएं , अपने अंदर आत्मविश्वास लाना होगा की अगर किसी काम को कोई और कर सकता है तो  मैं भी कर सकता हुँ। ..हमें अपनी क़ाबलियत बढ़ानी होगी। .... अंदर  की जज्बे को जगाना होगा की किसी के चाहने या न चाहने से कुछ नहीं होगा जबतक की में खुद नहीं चाहुँ हमारे अंदर क्या है खुद पे काम करना होगा वैसा बनना होगा। ...... कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए की कोई दूसरा हमारे लिए क्या सोचता है !
खुद के लिए हम जैसा सोचते हैं वैसा ही लोग हमारे लिए सोचते हैं और सच में हर कोई हमारे बारे में अच्छा नहीं सोच सकता हर कोई हमें महत्व नहीं दे सकता। ..... लेकिन अगर हमें किसी खास से महत्व भी चाहिए तो किसी  से  गिडगिडाने में कुछ नहीं मिलता सिर्फ भीख ही मिलती है ! इसलिए खुद को  दें अपनी जिंदगी में महत्व क्यूंकि आपकी अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा महत्व आप रखते हैं अपने लिए !!



           ऐ मुसाफिर क्यों किसी और के महत्व के लिए इतना तरसता है ,  
           जबकि तु  महत्त्व है , तु खुद में पूर्ण है अपने  लिए !!
           जो चाहेगा वही बनेगा अपनी  जिंदगी में ,
           जब तू स्वयं अपने   महत्व को समझ पाएगा !!


बुधवार, 6 मई 2020

शक (भाग - 1 )




ये क्या हो गया रात मुझे  ..... क्यूँ  झल्ला गई मैं ऐसा क्या मन में चल रहा था मेरे   इतनी छोटी सी बात पे इतना गुस्सा क्यों आ गया  बहुत पछतावा हो रहा है अपने बात करने के तरीके पे पिताजी को  कितना बुरा लगा होगा जिस लहजे में मैंने गुस्से से पिताजी से  बात की थी वो भी  तो सही नहीं था
...... सोचते - सोचते मन बहुत विचलित था  और रात के बारे में सोच रहा था , कि अभी बहुत तेज बारिश हुई , बिजली भी बहुत जोर से कड़क रही थी .... हवाओं  का रुख भी बहुत तेज और डरावना  था.... तेज हवाओं के कारण  घर के दरवाजे और खिड़कियों से आवाजें आ रही थी ..... मानो की तेज हवाओं के कारण दरवाजें और खिड़कियां टूट  जाएँगी इतने में मेरी  नींद खुली मैंने  समय देखा रात के 2:17  बज रहे थे , मैं अपने बिस्तर से उठी और मैंने घर की एक ही बिजली जलाई अगर ज्यादा बिजली जलती तो घर के दूसरे सदस्यों की नींद ख़राब हो सकती थी। ..... और जल्दी - जल्दी मैं  घर के दरवाजों और खिड़कियों को बंद करने लगी नहीं तो बारिश का पानी घर मैं  आ जाता और तेज हवाओं से दरवाजों और खिड़कियों के टूटने की आशंका थी ...... दरवाजों और खिड़कियों को बंद करने के बाद अचानक मेरा ध्यान बालकनी के सूखे कपड़ों पे गया जो बारिश में गीले हो रहे थे...... जल्दी - जल्दी उनको उतरने लगी  उन कपड़ों को बालकनी से लेते समय मैं भी भींग गई क्योकिं बारिश बहुत तेज थी और हवा भी बहुत भयावन थी .... जैसे ही अपने हाथों से कपड़ों को घर के कोने में रखे कुर्सी पे रखकर सोने  के लिए अपने कमरे की ओर मुड़ी वैसे ही एक चीखने और उत्तेजना भरे स्वर से घर के दूसरे कमरे से आवाज आयी " क्या कर रही है , बिजली क्यों जलाई है, क्यों इस समय जगी है ये कोई समय है बाहर  रहने का क्या तरीका अपनाया हुआ है !"  देखा तो पिताजी गुस्से से आंखे लाल करके खड़े होकर मुझे घूरते  हुए  गुस्से से चिल्ला थे.... उनके इस रवैये पर मुझे भी बहुत गुस्सा आया मैंने भी जोर से चिल्ला के जवाब में बोल दिया की  "क्या समय है मुझे भी पता है तेज हवा और बारिश थी कपड़े बाहर भींग रह थे उन्हें ही लेने गई थीं कोई परेशानी आपको"  और अपने दोनों पैरों को पटकते हुए अपने कमरे  में जाने लगी अपनी तिरछी निगाहों से मैनें पिताजी की आँखों को देखा जिसमें मेरे जवाबों से वो कुछ संतुष्ट दिखाई दिए और मेरे बोलने के लहजों से गुस्से भी लेकिन वो चुपचाप फिर अपने  कमरे में सोने चले गए और में अपने कमरे में ! अपने बिस्तर पे लेटे - लेटे काफी समय हो गया लेकिन नींद गायब हो चुकी थी मन बार - बार यही सोच रहा था की ऐसा क्या चल रहा होगा पिताजी के मन में जो वो इतनी बुरी तरह से मेरे ऊपर चिल्लाए.... क्या उनको मुझपे कोई शक था की मैं  कुछ गलत करने जा रही हुँ क्या उनको मेरे चरित्र पे कोई शंका थी वैसे गुस्सा मुझे खुद पे भी आ रहा था की मुझे उन्हें उस तरीके से जवाब नहीं देना चाहिए था फिर भी मन बहोत बेचैन था की काश मैं बस थोडा शांत रहती तो सही होता क्या जरुरत थी मुझे उनपर उस तरीके से बोलने की लेकिन अब पछताय होत  क्या जब चिड़िया चुग गई खेत !
कुछ भी होअब से इस बात का ध्यान रखूंगी की इस तरीके से मैं अपने पिता को जवाब नहीं दूंगी ! खैर ये तो मेरे मन में पछतावा था लेकिन इससे ज्यादा तकलीफ़  इस बात की थी की आखिर पिताजी ने मुझसे वैसे बात क्यों की कितने समय के बाद तो उन्होंने मुझसे कुछ बोला था थोड़ा प्यार से ही पूछ लेते की बीटा  क्या हुआ बिजली क्यों जलाई है रात ज्यादा हो गई है अभी तक तुम यही हो उनका ऐसा स्नेह भरा बोल सुनके मेरे भी जवाब कुछ और होते और उसके बाद मुझे आदेश देते की जाओ जाके सो जाओ ! रात हो चुकी है मैं भी बहुत खुश होती क्योँकि मुझे पता होता की उनके इस प्रकार के आदेश में भी स्नेह भरा है !

मैं भूल जाती की पिताजी ने मुझे बाहर जाने से मना किया है मैं किसी अजनबी के सामने भी घर में नहीं आ सकती और अगर वो कोई पुरुष है तो पिताजी की सख्त पाबन्दी है की मैं नहीं मिल सकती यहाँ तक की शाम होते ही मैं छत पर भी नहीं रह सकती थी सूर्यअस्त के साथ मेरे भी उस दिन की अस्ति हो जाती थी बस इतनी इजाजत थी कि अगर कोई रिस्तेदार आ गए तो वहां उनके समीप बैठ सकती थी वैसे मेरा मन नहीं करता था किसी भी रिस्तेदारों के पास बैठने का जैसे मैं कोई बैटरी से चलने वाली गुड़िया या खिलौना हूँ वैसे ही शायद मैं बन रही थी लेकिन मैं पहले वाली अपनी ज़िंदगी जीना चाहती थी। ....... यही सोचते - सोचते मैं कब अपने अतीत मैं चली गई पता ही नहीं चला। .......


                                                                                                                                              (क्रमशः )





  आज हम बात करेंगे पीढ़ी के अंतर के बारे में। हम सबने इसे महसूस किया है—जब हमारे माता-पिता या दादा-दादी हमारी पसंद-नापसंद को समझ नहीं पाते, ...