बुधवार, 6 मई 2020

शक (भाग - 1 )




ये क्या हो गया रात मुझे  ..... क्यूँ  झल्ला गई मैं ऐसा क्या मन में चल रहा था मेरे   इतनी छोटी सी बात पे इतना गुस्सा क्यों आ गया  बहुत पछतावा हो रहा है अपने बात करने के तरीके पे पिताजी को  कितना बुरा लगा होगा जिस लहजे में मैंने गुस्से से पिताजी से  बात की थी वो भी  तो सही नहीं था
...... सोचते - सोचते मन बहुत विचलित था  और रात के बारे में सोच रहा था , कि अभी बहुत तेज बारिश हुई , बिजली भी बहुत जोर से कड़क रही थी .... हवाओं  का रुख भी बहुत तेज और डरावना  था.... तेज हवाओं के कारण  घर के दरवाजे और खिड़कियों से आवाजें आ रही थी ..... मानो की तेज हवाओं के कारण दरवाजें और खिड़कियां टूट  जाएँगी इतने में मेरी  नींद खुली मैंने  समय देखा रात के 2:17  बज रहे थे , मैं अपने बिस्तर से उठी और मैंने घर की एक ही बिजली जलाई अगर ज्यादा बिजली जलती तो घर के दूसरे सदस्यों की नींद ख़राब हो सकती थी। ..... और जल्दी - जल्दी मैं  घर के दरवाजों और खिड़कियों को बंद करने लगी नहीं तो बारिश का पानी घर मैं  आ जाता और तेज हवाओं से दरवाजों और खिड़कियों के टूटने की आशंका थी ...... दरवाजों और खिड़कियों को बंद करने के बाद अचानक मेरा ध्यान बालकनी के सूखे कपड़ों पे गया जो बारिश में गीले हो रहे थे...... जल्दी - जल्दी उनको उतरने लगी  उन कपड़ों को बालकनी से लेते समय मैं भी भींग गई क्योकिं बारिश बहुत तेज थी और हवा भी बहुत भयावन थी .... जैसे ही अपने हाथों से कपड़ों को घर के कोने में रखे कुर्सी पे रखकर सोने  के लिए अपने कमरे की ओर मुड़ी वैसे ही एक चीखने और उत्तेजना भरे स्वर से घर के दूसरे कमरे से आवाज आयी " क्या कर रही है , बिजली क्यों जलाई है, क्यों इस समय जगी है ये कोई समय है बाहर  रहने का क्या तरीका अपनाया हुआ है !"  देखा तो पिताजी गुस्से से आंखे लाल करके खड़े होकर मुझे घूरते  हुए  गुस्से से चिल्ला थे.... उनके इस रवैये पर मुझे भी बहुत गुस्सा आया मैंने भी जोर से चिल्ला के जवाब में बोल दिया की  "क्या समय है मुझे भी पता है तेज हवा और बारिश थी कपड़े बाहर भींग रह थे उन्हें ही लेने गई थीं कोई परेशानी आपको"  और अपने दोनों पैरों को पटकते हुए अपने कमरे  में जाने लगी अपनी तिरछी निगाहों से मैनें पिताजी की आँखों को देखा जिसमें मेरे जवाबों से वो कुछ संतुष्ट दिखाई दिए और मेरे बोलने के लहजों से गुस्से भी लेकिन वो चुपचाप फिर अपने  कमरे में सोने चले गए और में अपने कमरे में ! अपने बिस्तर पे लेटे - लेटे काफी समय हो गया लेकिन नींद गायब हो चुकी थी मन बार - बार यही सोच रहा था की ऐसा क्या चल रहा होगा पिताजी के मन में जो वो इतनी बुरी तरह से मेरे ऊपर चिल्लाए.... क्या उनको मुझपे कोई शक था की मैं  कुछ गलत करने जा रही हुँ क्या उनको मेरे चरित्र पे कोई शंका थी वैसे गुस्सा मुझे खुद पे भी आ रहा था की मुझे उन्हें उस तरीके से जवाब नहीं देना चाहिए था फिर भी मन बहोत बेचैन था की काश मैं बस थोडा शांत रहती तो सही होता क्या जरुरत थी मुझे उनपर उस तरीके से बोलने की लेकिन अब पछताय होत  क्या जब चिड़िया चुग गई खेत !
कुछ भी होअब से इस बात का ध्यान रखूंगी की इस तरीके से मैं अपने पिता को जवाब नहीं दूंगी ! खैर ये तो मेरे मन में पछतावा था लेकिन इससे ज्यादा तकलीफ़  इस बात की थी की आखिर पिताजी ने मुझसे वैसे बात क्यों की कितने समय के बाद तो उन्होंने मुझसे कुछ बोला था थोड़ा प्यार से ही पूछ लेते की बीटा  क्या हुआ बिजली क्यों जलाई है रात ज्यादा हो गई है अभी तक तुम यही हो उनका ऐसा स्नेह भरा बोल सुनके मेरे भी जवाब कुछ और होते और उसके बाद मुझे आदेश देते की जाओ जाके सो जाओ ! रात हो चुकी है मैं भी बहुत खुश होती क्योँकि मुझे पता होता की उनके इस प्रकार के आदेश में भी स्नेह भरा है !

मैं भूल जाती की पिताजी ने मुझे बाहर जाने से मना किया है मैं किसी अजनबी के सामने भी घर में नहीं आ सकती और अगर वो कोई पुरुष है तो पिताजी की सख्त पाबन्दी है की मैं नहीं मिल सकती यहाँ तक की शाम होते ही मैं छत पर भी नहीं रह सकती थी सूर्यअस्त के साथ मेरे भी उस दिन की अस्ति हो जाती थी बस इतनी इजाजत थी कि अगर कोई रिस्तेदार आ गए तो वहां उनके समीप बैठ सकती थी वैसे मेरा मन नहीं करता था किसी भी रिस्तेदारों के पास बैठने का जैसे मैं कोई बैटरी से चलने वाली गुड़िया या खिलौना हूँ वैसे ही शायद मैं बन रही थी लेकिन मैं पहले वाली अपनी ज़िंदगी जीना चाहती थी। ....... यही सोचते - सोचते मैं कब अपने अतीत मैं चली गई पता ही नहीं चला। .......


                                                                                                                                              (क्रमशः )





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