मंगलवार, 14 जुलाई 2020

आपसी टकरार को कहें बाय - बाय














आपसी रिश्तों की साझेदारी, समझदारी, परवाह ही रिश्तों में मिठास और प्यार को बढ़ाते हैं, फिर भी हम कितनी बार अपने उन्ही रिश्तों को ठेस पहुंचते हैं वो भी छोटी - छोटी बातों में जिनको हम हँस के मुस्कुराके टाल सकते हैं ! हम उन बातों को फालतू में खींचते रहते हैं उनको बढ़ाते रहते हैं जिनकी कोई आवश्यकता नहीं होती ! कितनी बार तो इस बात पे  बहस  होती है की दाल में टमाटर क्यों डाला तो धनिया पत्ता क्यों नहीं डाला और तो और ये बातें इतनी आगे बढ़ जाती है की रिश्तों में दरारें आने लगती है ! सबसे ज्यादा तो रिश्ते तब ख़राब होते हैं जब कोई दूसरा उसमें अपनी बात बोलने लगता है या फिर दखल देने लगते हैं !
हमें अपने जीवन में किसका महत्त्व ज्यादा है उसको देखना पड़ेगा किसी तीसरे के कारन हमें अपने रिश्तों को नहीं खोना चाहिए और नाहीं किसी बुरी बातों को महत्त्व देना चाहिए जो हो गया सो हो गया उसने बोला मैनें बोला ठीक है अब आगे से नहीं बोलेंगे अपने रिश्तों को महत्त्व देंगे किसी तीसरे को आने ही नहीं देना चाहिए अगर सामने वाला सही है उसने बस छोटी से गलती की है उसका बखेड़ा बनाके क्यों खुद एक- दूसरे को तकलीफ देना किसी तीसरे के कारण लड़ाई हुई है वो तो चाहता ही यही था !
सबसे पहले तो ये सोचना होगा की रिश्तों के लिए वास्तव में जरुरी क्या है उसको ऐसी क्या चीज़ है जिसके कारन हम आपस में क्यों जुड़े हैं  ऐसी क्या - क्या चीजें हैं जो हम एक - दूसरे के साथ पूरी जिंदगी निभा सकते हैं ! बाक़ी तो छोटी - छोटी बातें हैं, या जो भी आदतें हैं वो बदली जा सकती है लेकिन उन छोटी - छोटी बातों के लिए हम वास्तव में हमारे रिश्ते के लिए क्या जरुरी है उसको भूल जाते हैं और फालतू में लड़ाई करने लग जाते हैं जो की नहीं करने चाहिए, बस सारा का सारा झगड़ा ही ख़तम !

अपने रिश्तों को महत्त्व देना चाहिए जो हमारी जिंदगी में अहमियत रखते हैं ना की उस चीज़ को जिसके कारण रिश्ता टूटने की नौबत आए ! समझौता नहीं जिंदगी को अच्छे से जियो......क्यूंकि सही ही कहा गया है जिंदगी ना मिलेगी दोबारा अब इसको कैसे जीना है ये निर्णय हमारे ही ऊपर  है ! 










रविवार, 12 जुलाई 2020

हर बात पर गुस्सा ना हों













क्यों हम या कोई और किसी भी बात पर टिप्पणी देने लगते हैं , बातों और चीज़ों को बिना सोचे समझे दूसरे पर चिल्लाने लगते हैं उनसे लड़ने लगते हैं एक पल के लिए ये भी नहीं सोचते की मुद्दा क्या है क्या बात इतनी बड़ी है की इस स्तर तक लड़ाई हो या नहीं ! कितनी बार तो ऐसा होता है की बात बहुत छोटी होती है और उस पर हम लड़ने लग जाते हैं भले ही सामने वाली की उसमें कोई गलती ना हो उसने वो गलती जानबूझ के न की हो बल्कि उससे हो गई हो तो उसमें चिल्लाने की या उस व्यक्ति से लड़ने की कोई बात नहीं है कितनी बार तो आपस में लड़ाई हो जाती है ! हर व्यक्ति के साथ ऐसा उसके जीवन में हुआ होगा की किसी दूसरे पर चिल्लाने, मारपीट करने के बाद ये मन में विचार आया हो की अरे इसमें इतना बोलने की जरुरत नहीं थी या हाथ उठाने की भी आवश्यकता नहीं थी  गलती हो गई थी उससे उसने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया था फिर पछताने से कुछ नहीं होता जो कुछ होना होता है वो हम गुस्से में करदेते हैं और फिर बाद में पछताते हैं !

हमें उस घटना को समझना होना उसको जानना होगा की वो किसी के द्वारा गलती से हो गया है या फिर उसने जानबूझ के उसको किया है उसी के अनुसार हमें अपना बर्ताव रखना चाहिए ये नहीं की कुछ भी हुआ तो सीधा लड़ने लग जाएं मारपीट पे उतर जाएँ ! मान लीजिये की हम अगर किसी होटल या भोजनालय में हैं और परोसते समय वहाँ के किसी कर्मचारी के द्वारा हमारे ऊपर कुछ गिर जाता है तो क्या हमें उसे मारना चाहिए उसपे चिल्लाना चाहिए और उसपर आरोप लगाना चाहिए की नहीं तूने मेरे कपडे गंदे कर दिये...... बिल्कुल नहीं हमें हल्की सी मुस्कान के साथ उसको कहना चाहिए की कोई बात नहीं हो जाता है ऐसा कभी - कभी, क्योंकि वो कर्मचारी तो खुद ही डरा होगा की उससे ये गलती हो गई है और उसके साथ ऐसा व्यवहार करके हम उसको भी बहुत ख़ुशी देंगे और हम भी आन्दित रहेंगे ! लेकिन यहीं अगर कोई पति अपनी पत्नी को हमेशा नीचा दिखता है लोगों के सामने उसको बेइज्जत करता है तो ये वो जानबूझ के कर रहा है इसमें उसको कहना पड़ेगा उसको बताना  पड़ेगा की ये गलत  हैं और भले ही पत्नी को उसको डांटना पड़े या चिल्लाना आये या फिर वो अपने पति से बात न करे उसको समझाना पड़ेगा की उसके पति ने जी कुछ किया वो सतप्रतिशत गलत है लेकिन इसका मतलब ये नहीं की पत्नी भी लोगों के सामने चिल्लाए और अपने पति पर डांटने लगे या उसके साथ मारपीट करने लगे  !!

तो कुछ भी निर्णय लेने से पहले हमें ये समझना पड़ेगा की गलती जानबूझ के दूसरे के द्वारा की गई है या गलती से हो गई है, तभी कोई गतिविधि करनी चाहिए !!












  आज हम बात करेंगे पीढ़ी के अंतर के बारे में। हम सबने इसे महसूस किया है—जब हमारे माता-पिता या दादा-दादी हमारी पसंद-नापसंद को समझ नहीं पाते, ...