आपसी रिश्तों की साझेदारी, समझदारी, परवाह ही रिश्तों में मिठास और प्यार को बढ़ाते हैं, फिर भी हम कितनी बार अपने उन्ही रिश्तों को ठेस पहुंचते हैं वो भी छोटी - छोटी बातों में जिनको हम हँस के मुस्कुराके टाल सकते हैं ! हम उन बातों को फालतू में खींचते रहते हैं उनको बढ़ाते रहते हैं जिनकी कोई आवश्यकता नहीं होती ! कितनी बार तो इस बात पे बहस होती है की दाल में टमाटर क्यों डाला तो धनिया पत्ता क्यों नहीं डाला और तो और ये बातें इतनी आगे बढ़ जाती है की रिश्तों में दरारें आने लगती है ! सबसे ज्यादा तो रिश्ते तब ख़राब होते हैं जब कोई दूसरा उसमें अपनी बात बोलने लगता है या फिर दखल देने लगते हैं !
हमें अपने जीवन में किसका महत्त्व ज्यादा है उसको देखना पड़ेगा किसी तीसरे के कारन हमें अपने रिश्तों को नहीं खोना चाहिए और नाहीं किसी बुरी बातों को महत्त्व देना चाहिए जो हो गया सो हो गया उसने बोला मैनें बोला ठीक है अब आगे से नहीं बोलेंगे अपने रिश्तों को महत्त्व देंगे किसी तीसरे को आने ही नहीं देना चाहिए अगर सामने वाला सही है उसने बस छोटी से गलती की है उसका बखेड़ा बनाके क्यों खुद एक- दूसरे को तकलीफ देना किसी तीसरे के कारण लड़ाई हुई है वो तो चाहता ही यही था !
सबसे पहले तो ये सोचना होगा की रिश्तों के लिए वास्तव में जरुरी क्या है उसको ऐसी क्या चीज़ है जिसके कारन हम आपस में क्यों जुड़े हैं ऐसी क्या - क्या चीजें हैं जो हम एक - दूसरे के साथ पूरी जिंदगी निभा सकते हैं ! बाक़ी तो छोटी - छोटी बातें हैं, या जो भी आदतें हैं वो बदली जा सकती है लेकिन उन छोटी - छोटी बातों के लिए हम वास्तव में हमारे रिश्ते के लिए क्या जरुरी है उसको भूल जाते हैं और फालतू में लड़ाई करने लग जाते हैं जो की नहीं करने चाहिए, बस सारा का सारा झगड़ा ही ख़तम !
अपने रिश्तों को महत्त्व देना चाहिए जो हमारी जिंदगी में अहमियत रखते हैं ना की उस चीज़ को जिसके कारण रिश्ता टूटने की नौबत आए ! समझौता नहीं जिंदगी को अच्छे से जियो......क्यूंकि सही ही कहा गया है जिंदगी ना मिलेगी दोबारा अब इसको कैसे जीना है ये निर्णय हमारे ही ऊपर है !
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