सोमवार, 28 सितंबर 2020

अल्फाज़ 2












ए काश की तुने मुझे गुस्सा ही दिलाया होता, 

चिल्ला के, रोके, नाराज़ होके  उतर ही जाता ! 

लेकिन तुने तो मुझे ही अंदर से तोड़ दिया,

क्योंकि तूने अपना रास्ता कहीं ओर मोड़ लिया ,

ए मेरे खुदा अब तू ही बता की खुद को कैसे समझाऊँ,

 की उसका  खुमार ही मेरे दिल से उतर  जाता !! 


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